Anju Dixit

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काला बाजारी

काला बाजारी
हर शख्स हो गया यहाँ व्यापारी,
करने लगा देखो काला बाजारी।

सबको अपना ही स्वार्थ दिखता है,
न किसी को कोई अपना समझता है,
हर तरफ फैल गयी सत्ता व्यभिचारी।

 देश का पैसा देश से भेजे बाहर,
 बैठे सच्चे बनके जेम गर्माकर,
कुछ नाता नही मानवता से लाज शर्म गयी इनकी मारी।

यह तो बहुत खुश हैं ऊँचे महल में,
चाहे कोई गिरे दलदल में,
इन्हें न कुछ लेना चाहें कितनी भी फैले महामारी।

 कितना भी कमाए पेट न भरता,
दौलत का नशा इनको ऐसा चढ़ता,
 नीयत में खोट हैं इनकी भारी।

अपनी माँ तो मां ,अपनी बेटी दुलारी,
बन जाते पक्के कमीने  ,
जब दिख जाती  कोई नारी।

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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

16-Feb-2022 03:43 PM

बहुत खूबसूरत

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